Monday, January 10, 2011

धरती

ऐसा  तो  नहीं है कि  सूखी धरती  के अरमान  नहीं  होते
बंजर  ज़मीन भी देखती है सपने ....
.फूलों के
झरनों के
लहलहाते बरसते बादलों के ....
सूखते  पेड़ों  के

टूटते  पत्तों  के
ज़मीन छोड़ती जड़ों के....
सपने  हर तरह  के
हर रंग के देखती है


सूखी धरती ...

पानी की खुशबू को
 तरसती,
पीले पत्तों की धरती,
ज़र्द  फूलों की धरती,
ताज़े फूलों की धरती....

मेरा घर,
मेरा आस्मां,
मेरी चारों दिशाएं,
मेरा आदि, मेरा अंत,
मेरी माँ सी,
मेरा राह तकती
धरती ........
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